Sunday, August 2, 2009

एक लघु कथा

भीगी बिल्ली
कल दोपहर घर पर करीब दो बजे हमें एक बिल्ली की म्याऊं म्याऊं सुनाई दी ! आवाज़ नीचे आठवीं मन्ज़िल के फ़्लेट की बाल्कनी से आ रही थी ! वहां एक बिल्ली आकर फ़ंस गयी थी और उस बेचारी को निकलने का रास्ता नहीं मिल रहा था ! वो वहां कैसे पहुंची ये बात समझ में नहीं आ रही थी ! शायद नीचे वालों के घर में घुस गयी होगी और जब उन लोगोंने उसे भगाना चाहा होगा तो वह बाल्कनी में कूद गयी होगी ! इसी बीच घरवालों ने खिड़की की सिटकनी चढा दी होगी! जो भी हो उसकी रह रह कर आती आवाज़ ने हमें झुंझला कर रख दिया था पर हम कर ही क्या सकते थे ! वह कभी आठ्वीं और कभी नौवीं मन्ज़िल की बाल्कनिओं में चली जाती और दोनों जगहों से भगाने पर बीच में लगी टीन पर ही कुछ देर के लिये बैठ जाती ! फ़िर कुछ समय बाद उसकी म्याऊं म्याऊं बंद हो गयी और हम उसे लगभग भूल सा गये!
शाम को अचानक बरसात शुरू हो गयी ! आसमान काले बादलों से ढक गया किन्तु इसमें आश्चर्य की कोई बात नहीं थी ! सावन-भादों होते ही हैं बरसात के लिये ! रन्जना अर्थात मेरी पत्नी ऐसे सुहावने मौसम के अवसर पर पकौड़ों के साथ चाय बनाने में ज़रा भी देर नहीं लगातीं !
हमने चाय की पहली चुस्की ली ही थी कि लो, बाल्कनी से फिर बिल्ली ने रट लगानी शुरू कर दी लेकिन इस बार उसकी आवाज़ में दयनीयता की पुकार सी थी ! तेज बौछारों से वह बच नहीं पा रही थी ! हवा भी तेज थी जिससे पानी सीधा उसपर पड़ रहा था ! वह सचमुच ही भीगी बिल्ली बनकर दुबकी हुई थी और इधर उधर देख रही थी कि अपने आप को इस मुसीबत से कैसे बचाये ! हमने खिड़की खोल दी ताकि वो कमरे में आ जाये लेकिन उसे शायद हमारे नेक इरादे पर विश्वास न था ! उसे डर था कि कहीं उसे मारा पीटा न जाये ! हमें खिड़की पर खड़ा देख वह फ़ौरन नीचे लगी टीन पर कूद गयी ! बारिश थम चुकी थी !हम वापस अपनी चाय पीने लगे !
जिन लोगों ने मुम्बई की बरसात देखी है वह इस बात को अच्छी तरह जानते हैं कि लन्दन की तरह यहां भी कभी भी बरसात आती जाती रहती है, और मूसलाधार भी होती है! हमने रात क खाना खाया और कुछ देर टी वी देखने के बाद सोने की तैयारी करने लगे ! इसी बीच टीन पर बैठी बिल्ली हमारी बाल्कनी में आयी और एअर कन्डीशनर के डब्बे पर बैठ गयी जहां ऊंचाई के कारण पानी ज़रा कम आ रहा था ! फिर वह गमले में लगे बड़े बड़े पत्तों वाले पाम के पौधे के नीचे दुबक गयी ! हम चाह कर भी उसके लिये कुछ नहीं कर पा रहे थे ! किसी ने सच ही कहा है कि मदद भी उसीकी की जा सकती है जो मदद लेने को तैयार हो !
आधी रात को करीब दो बजे मुझे पत्नी की बुदबुदाहट सुनाई दी "मर जायेगी बिल्ली"
मैनें कहा "क्या कह रही हो तुम?" वह बोलीं "देख नहीं रहे कैसे मिमिया रही है चितकबरी बिल्ली ! पानी में सराबोर हो गयी है ! आदमी होता तो ज़रूर निमोनिया हो जाता ’
सचमुच अब तो उस बिल्ली की दर्द भरी आवाज़ में रोने का स्वर स्पष्ट सुनाई दे रहा था ! दूर से गली के कुछ आवारा कुत्तों के भौंकने की आवाजें आ रहीं थीं ! बिल्ली को शायद अपनी अवस्था की तुलना में उन कुत्तों की आज़ादी स्वर्ग जैसी प्रतीत हो रही होगी ! मुझे तो उसकी ये हालत देखकर कमोवेश उन दुखद परिस्थितियों की याद आ गयी जिनमे हमारे गावों मे कभी कभार छोटे छोटे बच्चे ट्यूब वेल के लिये खोदे गये गड्ढों में गिरने के हादसे हो जाते हैं ! टी वी पर उन्हें सुरक्षित निकालने के प्रयासों को कई बार देखा है ! हालांकि बिल्ली की तुलना मनुष्य के बच्चों से कतई नहीं की जा सकती और ऐसा करना अनुचित भी होगा, परन्तु बिल्ली को भी मुसीबत से निकाले जाने का हक तो बनता ही है ! अब जब इस काम की जिम्मेदारी संयोगवश मुझ पर आ ही गयी है तो मुझे ही कुछ करना पड़ेगा ! मै सोचने लगा कोई ऐसी तरकीब जिससे इस विपदाग्रस्त बिल्ली का कष्ट दूर किया जा सके!
" क्यों न हम लोग एक बार फिर उसे कमरे में बुलाने का प्रयत्न करें ! घर का मुख्य द्वार भी खुला छोड़ देंगे जिससे वह कमरे से निकल कर बैठक में होती हुई बिल्ड़िंग के गलिआरे में पहुंच कर आज़ाद हो जाये "
रात के ढाई बजे जब फ़ुटपाथ पर सोने वाले भी बरसात से बचते हुये दुकानों की सीढ़िओं पर लम्बी तान कर सो रहे थे, हम दम्पत्ति "बिल्ली बचाओ योजना" को साकार करने में जुट गये !
पहले रन्जना उठीं और दबे पांव जाकर आहिस्ता से कांच की स्लाइडिंग खिड़की खोल दी ! कमरे की बत्ती भी नहीं जलाई कि कहीं वह चौकन्नी न हो जाये,और हम दोनों हाल में जाकर सोफ़े पर सिमट कर चुपचाप मुंह सी कर बैठ गये और प्रतीक्षा करने लगे ! ज़रा सी आहट होती और हमें लगता बिल्ली कमरे में आ गयी है ! सच्चाई यह थी कि वह ऐसा कोई कदम उठाने से पहले पूरी तरह आश्वस्त हो जाना चाहती थी हम मनुष्यों से उसे कोई खतरा तो नहीं है !
हम इन्तेज़ार करते रहे उसके आने का पर वह इतनी आसानी से हमें सफ़लता का श्रेय देने को कतई तैयार न थी! इसी बीच पत्नी एक दो बार चुपके से कमरे में झांक आईं थीं कि कोई अच्छी खबर मिले पर हमारे ऐसे भाग कहां ? हम मन मसोसे नींद भरी आंखे बिछाये बैठे थे, शेर की मौसी की प्रतीक्षा में !
कहते हैं कि बारह सालों में घूरे के भी दिन फिरते हैं और हम तो ठहरे इन्सान वो भी परोपकारी ! बिल्ली कमरे में कूदी और चौकन्नी होकर धीरे धीरे आगे बढ़ने लगी ! हमारी बाछें खिल गयीं पर सांसें भी थम गयीं ! सफ़लता के लिये मन ही मन हनुमान चालीसा का जाप करने लगे ! देखते ही देखते वह आ गयी कमरे और हाल की देहरी तक, पर ये क्या वह तो वापस मुड़ गयी ! शायद उसे हमारी भनक लग चुकी थी और वह एक मुसीबत से निकल कर दूसरी में पड़ने को बिलकुल तैयार न थी ! हमारा तो ये हाल था जैसे हाथ से जैक पाट निकला जा रहा हो !
प्रभु ने हमारे मन के विचार जानकर आखिर उस बेवकूफ़ बिल्ली को सदबुद्धि दे ही दे ! एक ही झटके में वह कमरे से झपट कर हाल में होते हुये फ़र्राटे से मुख्य द्वार पार कर गयी ! बिल्ड़िंग के गलिआरे में पहुंच कर उसकी जान में जान आई और इसके साथ हमारी भी ! अब हम बेफ़िक्र होकर चैन की नींद सो सकते थे !
दूसरे दिन बिल्डिंग के कम्पाउन्ड में जब उससे मेरी आंखें चार हुईं तो ऐसा लगा मानो वह "थैंक यू" कह रही हो !

5 comments:

  1. blog ki duniya me naya ho. abhi sikhane ki kosis kar raha ho. aapki laghu katha padhi. achha laga. abhi bachho ki kahani ki jarurat he. is bare me kuch likhe to achha rahega.
    Manoj Kumar
    Editor SAMAGAM Media sathiyo ki magzin
    Bhopal. M- 09300469918

    ReplyDelete
  2. सुभाष गुप्ता जी - आपलोगों की नेक नीयती को दर्शाती यह (बड़ी) लघुकथा रोचक है। धन्यवाद।

    सादर
    श्यामल सुमन
    09955373288
    www.manoramsuman.blogspot.com
    shyamalsuman@gmail.com

    ReplyDelete
  3. bahut umda
    behtareen
    _____________swaagat hai

    ReplyDelete
  4. बिल्ली को धन्यवाद आप दीजिये क्योंकि उसकी वजह से आप एक कहानी लिख सके .अच्छी है

    ReplyDelete
  5. yadi se sach hai to bahut hi sundar sach hai is madhur sach ki rachna ke liye aap pranimatra ki duniya main dhnyawaad ke haqdaar hain

    ReplyDelete